जब बात आजीविका की होती है तब इंसान को महत्वाकांक्षाओं से समझौता करना पड़ता है। प्रियजन की मौत मस्तिष्क में गहरा छाप छोड़ देती है जिसके बाद ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है। संघर्ष जीवन का हिस्सा बन जाता है। लोगों से रोज़ वही बातें होती हैं, अपनी मतलब की बातें। अवचेतन मन खेल खेलने लगता है और दिन-साल बराबर लगते हैं। बीतते ही नहीं! 'माई रिलिजन माई राइट' एक ऐसा टीवी रौशनदानो जिसका मकसद दुनियाभर के साधारण लोगो...